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जिले में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने के लिए जारी है अनेक प्रयास

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी बाहर से मनोरोग चिकित्सको को बुलवाकर दे रहे जिले के मरीजों को सेवाएं।

कवर्धा। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने व आत्महत्या जैसे मानसिक समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए लगातार मुहिम चलाई जा रही है। मानसिक स्वास्थ्य दिवस के उपलक्ष्य में दिनाँक में 3 अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह मनाया जा रहा है। इसके लिए वैसे तो वर्ष भर विविध आयोजन स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी है,लेकिन जनजागरूकता कार्यक्रम की रफ्तार बढ़ाने के लिए जनजागरूकता सप्ताह मनाया जा रहा है। इसके लिए टीम स्कूल, कॉलेज व मितानिन, निजी व शासकीय संस्थाओं के अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए कार्यक्रम आयोजित कर मनोरोग के लक्षण, कारण व निवारण के बारे में जानकारियां दे रही है। जिला अस्पताल में प्रत्येक बुधवार ओपीडी भी इस तरह के मरीजों के लिए आयोजित की जा रही है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ सुजॉय मुखर्जी ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ, परामर्श, उपचार की सेवाएं भी मुहैया कराई जा रही है। इस हेतु बाहर जिलों से विशेषज्ञ चिकित्सकों को बुलाकर सेवाएं ली जा रही है।

लोहारा में मानसिक स्वास्थ्य जांच शिविर
गत 7 अक्टूबर को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र लोहारा में निशुल्कः मानसिक स्वास्थ्य शिविर लगाया गया। जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के नोडल ऑफिसर डॉ. विनोद चंद्रवंशी के द्वारा शिविर में आये मरीजों का मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण किया गया एवं दवाइयाँ प्रदान की गई। आराधना बंजारे (कम्युनिटी नर्स),अनिल हियाल (सीनियर साइकेट्रिक नर्स)एवं अखिलेश साहू (साइकेट्रिक सोशल वर्कर)के द्वारा मरीजों का कॉउंसलिंग किया गया। बीएमओ लोहारा शिविर को सफल बनाने में डॉ संजय खरसन ने इस तरह के आयोजनों को आवश्यक बताते हुए माह में एक बार ब्लॉक में इस तरह के शिविर करवाते रहने की बात कही। शिविर में कुल 20 मरीजों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया और फॉलो अप के लिए जिला अस्पताल कव र्धा आने की सलाह दी गई। शिविर में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के समस्त अधिकारी, कर्मचारीगण, मरीज एवं उनके परिजन उपस्थित रहे।

टीन एजर्स पर विशेष ध्यान देने की जरूरत
बाल संरक्षण आयोग छत्तीसगढ़ की अध्यक्ष श्रीमती प्रभा दुबे बताती हैं कि शाला त्यागी और क्राइम में लिप्त होने वाले बच्चों में स्कूल के समय मेंटल प्रेशर में रहने वाले बच्चों की तादाद काफी अधिक है। वे बच्चे जो स्कूल के समय अपनों की उम्मीदों के अकार्डिंग अंक नही ला पाते वे हताश होकर या तो पढ़ाई छोड़ देते हैं और खुद को फेलियर मानकर गुमनाम जीवन जीने लगते हैं या क्राइम की ओर मुड़ जाते हैं। यह हताशा अधिक हो तो बच्चे आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं।
मनोरोग चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ सृजिता मुखर्जी ( एमडी सायकायट्री) के अनुसार स्कूली बच्चों में रेंक लाने का बोझ और सही मार्ग दर्शन की कमी अवसाद अथवा आत्महत्या की बड़ी वजह है। मीडिया द्वारा आत्महत्या का ग्लैमरस प्रेजेंटेशन भी किशोरों और बच्चों की आत्महत्याओं की एक वजह है। बच्चों पर पैरेंट्स की उम्मीदों को पूरा करने की चिंता, प्रतिस्पर्धा में अव्वल आना, पढ़ाई में अच्छे अंक लाना या टीनएजर्स में रिलेशनशिप में धोखे का डर आदि अनेक दबाव हैं। ये सभी ऐसी छोटी-छोटी बातें हैं, जो बच्चों के दिमाग में घर कर जाती हैं तो वे डिप्रेशन के शिकार होने लगते हैं यह स्थित उनकी जान तक की दुश्मन बन जाती हैं। हालांकि डिप्रेशन का सही इलाज मुमकिन है, बशर्ते समय रहते इलाज शुरू कर दिया जाए।

डिप्रेशन के लक्षण
मनोरोग चिकित्सकों की मानें, तो डिप्रेशन की बीमारी किसी को भी हो सकती है। मनोरोग चिकित्सक डॉ अरुणांशु परियल कहते हैं “डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है और यह किसी को भी हो सकती है। इंसान के दिमाग़ में न्यूरोटर्मिक नाम का रसायनल बनता है, दिमाग़ में इसकी मात्रा कम होने के कारण डिप्रेशन की बीमारी हो जाती है।” कुछ ऐसे लक्षण भी हैं, जिनके बीच दौर में ही आप अपने बच्चे के दिमाग में पनप रहे डिप्रेशन को पहचान सकते हैं। जैसे-

👉आपका हंसता-खेलता बच्चा अचानक से गुमसुम सा बर्ताव करने लगे।

वो चिड़चिड़ा हो जाए या छोटी से छोटी बात पर उसे ग़ुस्सा आने लगे या वह अधिक मज़ाक करने लगे।

* खेल-कूद से कभी न थकने वाले बच्चे बाहर जाकर दोस्तों के साथ खेलने से जी चुराने लगे।

* जो बच्चा तन्हाई में एक पल न बिताता हो, उसे अचानक अकेले रहने का मन करने लगे।

* दिन में काफ़ी समय टीवी के सामने बैठ अपने पसंदीदा कार्टून को देखने या वीडियो गेम को अपने से बहुत अधिक प्यार करनेवाला बच्चा अचानक से इन चीज़ों की तरफ़ भी न देखें।

*बच्चा बिना किसी ख़ास कारण के स्कूल जाने से बार-बार इनकार करने लगे और ज़बरदस्ती स्कूल भेजने पर कोई न कोई बीमारी का बहाना बना दे।

* खाने-पीने में अरुचि या मन नहीं लगना।

* भरपूर नींद न ले। छोटी उम्र में जब बच्चे 8 से 10 घंटे की नींद पूरी करते हैं, तो स्थिति सामान्य है ,लेकिन अचानक इसमें कमी आए तो बच्चे पर ध्यान देने की जरूरत है।

*डिप्रेशन का इलाज**
परीक्षा परिणाम आने के बाद या कभी भी उक्त लक्षण नजर आए तो उसे बिल्कुल नज़रअंदाज न करें। उसे मनोरोगचिकित्सक के पास या मेंटल हेल्थ सेंटर लेकर जाएं, ताकि समय पर बच्चे का सही इलाज शुरू किया जा सके। डॉ परियल कहते हैं डिप्रेशन का सही इलाज न होने पर यह बच्चे को या पीड़ित व्यक्ति को आत्महत्या जैसा गंभीर क़दम उठाने पर भी मजबूर कर सकता है। डिप्रेशन का इलाज संभव है। इसके इलाज के लिए दवाइयां और काउंसलिंग दोनों की ही जरूरत होती है। ऐसे हालातो में परिजनों को बच्चे को डिप्रेशन से मुक़ाबला कर सकने वाली बातों को सीखने में बच्चे की मदद करनी चाहिए। गत 16 जून को राज्य मानसिक अस्पताल सेंदरी के अधीक्षक डॉ बी आर नन्दा, कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ आशुतोष तिवारी व साइकिएट्रिक सोशल वर्कर प्रशांत पांडेय द्वारा जिला अस्पताल के चिकित्सकों, स्टाफ नर्स व अन्य मेडिकल स्टाफ को सेमिनार के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य परामर्श व मैनेजमेंट की विस्तृत जानकारी दी गई ,इसके अलावा ओपीडी में आये 20 मानसिक मरीजों का उपचार व परामर्श भी इन्होंने किया। इसी प्रकार हाल ही में ओडिसा की मनोरोग चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ सृजिता मुखर्जी ( एमडी सायकायट्री) द्वारा भी जिला अस्पताल आकर मरीजों को मुफ्त में परामर्श व उपचार की सेवाएं दी गईं। सीएमएचओ ने कहा कि प्रक्रिया जनहित में अनवरत जारी रहेगी व समय-समय पर ऐसी व्यवस्था की जाएगी, जिससे जिले की जनता को तमाम स्वास्थ्य सेवाएं सुगमता से मुहैया कराई जा सके।

Nikhil Soni

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