
वन भ्रमण या काल भ्रमण
आप ही सोचें आप ही तय करें।
अधुनिकता की आभा से प्रभावित वर्तमान जनजीवन भौतिकता के जाल में इस हद तक उलझ गया है कि जीवन और जीवनदायिनी प्रकृति के बीच के सम्बंध ही क्षीण हो गये हैं। आधुनिक मशीनों, आधुनिक संचार माध्यमों और इनके बीच प्रसारित होते नैसर्गिक प्राकृतिक स्थलों के उटपटांग दृश्यों की नकल करने के कारण आज प्रतिदिन लोग असमय ही काल ग्रसित हो रहे हैं। हम यह भूल गये हैं कि हम मानव हैं , हम प्रकृति के सामने कुछ भी नहीं हैं।
आज आप किसी भी सार्वजनिक आनंद प्राप्ति स्थल पर जाइये आपको प्रचुर मात्रा में मानव जनित कूड़ा करकट मिल ही जायेगा । बात यहीं खत्म नहीं होती , वायु, जल, अग्नि,वन,की रत्ती मात्र भी समझ न रखने वाला मानव प्रकृति को खिलौना समझ अपनी हरकत के कारण उन्ही की भेंट चढ़ जाता है। आप जाइये वसुंधरा पर स्थित अद्भत अलौकिक स्त्रोतों का आनन्द उठाइये पर अपना उत्तरदायित्व न भूलिये आप हरियाली देखें, जीव जंतु देखें, विभिन्न प्रकार के पक्षी, पशु देखें, वनस्पति देखें उनके औषधीय गुणों के प्रति अपना ज्ञान बढ़ाएं, पक्षियों के कलरव का आनन्द लें , कल कल ,छल छल बहती धारा ,झरनों का आनन्द लें जलीय जन्तुओ को जल क्रीड़ा करते देखें पर अपना दायित्व और क्षमता को न भूलें ।हम मानव धरती के प्राणी ही नहीं हैं शायद हम तो परग्रही हैं क्योंकि हमें न वर्षा , न ग्रीष्म ,न ही शीत हम प्रत्येक ऋतु के प्रति अनुकूल नहीं हैं ,फिर भी हम धरती पर अपने आपको सर्वशक्तिमान समझते हैं , पर सत्य तो यह है कि हम धरती के सबसे नाशक प्राणियों में से एक हैं। हम प्रकृति का दोहन बस करना जानते हैं प्रकृति का संरक्षण, सम्मान तो हम जानते ही नहीं । वनभोज में ,जलस्त्रोत में,मंदिर भ्रमण में, प्लास्टीक, बोटल ,कचरा, मदिरा सेवन , यह हमारी परंपरा बन गयी है, कुछ लोग बीच नदियों में भोजन की परंपरा भी चला दिये, इस वर्ष नदियों की हालत ऐसी है जैसे जनवरी फरवरी में हुआ करती है, हम भाद्रपद मास में भीषण गर्मी और उमस से जूझ रहे पर हम तो मानव हैं हम ही सर्वशक्तिमान हैं ।
चन्द्रवेश राणा पँवार