धमाका न्यूज़💥 वार्ड 19 पूर्व पार्षद संतोष नामदेव के यहाँ भव्य भागवत कथा का आयोजन, वृंदावन के कथा वाचक अशोक शास्त्री से भागवत महापुराण का श्रवण करने बड़ी संख्या में श्रद्वालुगण पहुंच रहें
कवर्धाl नगर के वार्ड क्रमांक 19 में कथा व्यास पं अशोक शास्त्री के द्वारा श्रीमद्भागत महापुराण की कथा सुनाई जा रही है। कार्यक्रम के पूर्व नगर में प्रथम दिवस भव्य शोभायात्रा निकाली गई। श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताह का आयोजन संतोष नामदेव पूर्व पार्षद के यहां कराया गया है। भागवत महापुराण का श्रवण करने बडी संख्या में श्रद्वालुगण पहुंच रहे है। भगवत कथा में दूसरे दिन वृंदावन के महाराज अशोक शास्त्री ने बताया कि कलयुग में भगवान का नाम ही अधार है। वर्तमान समय में कम परिश्रम से ही ईश्वर की प्राप्ती की जा सकती है। पहले के समय में जहां हजारो लाखो वर्ष तक तपस्या करना पडता था, वही कलयुग में अगर पूर्व भक्तिभाव से भगवान का स्मरण किया जाए तो उनकी प्राप्ती भी हो सकती है।
शास्त्री जी महाराज ने कहा कि जब राजा परीक्षित माता के गर्भ में थे, उसी समय अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग परीक्षित की मां उत्तरा के गर्भ पर किया। उन्होंने बताया कि उत्तरा ने भगवान श्री कृष्ण को पुकारा। भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की स्वयं रक्षा की। जब परीक्षित पैदा हुआ, उसी समय वह उठकर बैठ गया। जो भी नवजात परीक्षित को उठाकर अपनी गोद में बैठाने का प्रयास करता, वह उदास होकर बैठ जाता। लेकिन जैसे ही श्री कृष्ण ने नवजात परीक्षित को अपनी गोद में उठाया, तो वह जोर जोर से हंसने लगा। विद्वानों ने नवजात शिशु का नाम परीक्षित रखा क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं ही इस बच्चे की मां के गर्भ में रक्षा की थी। राजा बनने पर परीक्षित ने कलयुग को दंड देने का प्रसंग सुनाते हुए श्री शास्त्री ने कहा कि कलयुग राजा परीक्षित की शरणागति हो गया है इसलिए उसे क्षमा कर दीजिए। कलयुग ने अपने रहने के स्थान को मांगा तो राजा ने चार स्थान दिए। जुआ क्रीड़ा, शराब खाना दिए। इन स्थानों के बारे में सुनकर कलयुग ने राजा परीक्षित से कोई अच्छा स्थान प्रदान करने को कहा। इस पर राजा द्वारा भूल से उनके मुख से चैथे स्थान का नाम अधर्म से कमाए गए स्वार्ण निकल गया।
कुछ समय पश्चात राजा ने अपने पूर्वजों के मुकुटों को देखना चाहा तो एक मुकुट बहुत सुंदर था जिसको धर्मराज युधिष्ठिर ने छिपा कर रखा था। यह मुकुट जरासंध का था जिसको भीम छीन कर लाया था। राजा ने जैसे की उस सोने के मुकुट को पहना, कलयुग उसकी बुद्धि पर सवार हो गया। राजा जंगल में शिकार को खेलते हुए जंगल में स्थित शमीक ऋषि के आश्रम पहुंचा और अपना स्वागत करवाने को कहा। ऋषि शमीक ध्यान में थे। राजा की बुद्धि बिगड़ गई और उसने एक मरे को सांप को ऋषि के गले में डाल दिया। ऋषि के पुत्र को जैसे ही इस बारे में पता चला उसने तुरंत राजा को श्राप दे दिया कि सर्पो का पूर्वज तदाक सर्प तुम्हें सातवें दिन मार डालेगा। ध्यान भंग होने के बाद वह राजा को घर जाकर मुकुट उतारने के बाद पश्चात्ताप की अग्नि को महसूस करते हुए रोने लगा। उन्होंने कहा कि पाप एक व्यक्ति के जीवन को सही मार्ग से गलत मार्ग की ओर मोड़ देता है। उन्होंने कहा कि आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति को अच्छे व पुण्य के कार्य करने चाहिए।