धमाका न्यूज़💥जिले में शाला, शिक्षक अव्यवस्थित, पाठ्यपुस्तकों एवं गणवेश की पर्याप्त आपूर्ति अब तक नहीं, शिक्षक शालेय कार्य से बचने की जुगाड़ लगा कर समन्वयक या आश्रम प्रभारी बने बैठे, छात्रों के भविष्य के साथ हो रहा खिलवाड़
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कवर्धा. जिले में शिक्षा, शिक्षक, शाला , और अधिकारियों को बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से कोई सरोकार नहीं, जिले के दूरस्थ वनांचल या मैदानी क्षेत्रों में विभाग की कार्यशैली उदासीनता की पराकाष्ठा को भी पार कर गयी है, अधिकांश शालाओं में शासन द्वारा निःशुल्क प्रदाय की जाने वाली पाठ्यपुस्तकों एवं गणवेश की पर्याप्त आपूर्ति अब तक नहीं हो सकी है , वहीं कुछ शिक्षक आज भी शालेय कार्य से बचने की जुगत लगा कर समन्वयक या आश्रम प्रभारी बने बैठे हैं, सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि कुछ शालाओं के एक से अधिक शिक्षक अन्यत्र कार्य कर रहे जिस कारण उनके मुल शाला में एक ही शिक्षक पदस्थ है, राज्य सरकार से विगत वर्ष ही संलग्नीकरण को पूर्णतः रदद् करने हेतु आदेश जारी होने के बाद भी संलग्नता के आदेश होते रहना प्रश्नचिन्ह तो खड़े करेंगे ही। जिले में ऐसे शिक्षक हैं जो पूरी निष्ठा और तन्मयता से कार्य करते हैं जिसका परिणाम भी सभी को विदित होता ही है। किंतु कुछ चुनिंदा शिक्षक सिर्फ नेतागीरी, चाटूकारिता , जैसे गुणों से परिपूर्ण होकर अध्यापन कार्य छोड़ अपनी मनवांछित जगहों पर संलग्न हो कार्य कर रहे। प्रत्येक ब्लॉक में विकासखंड शिक्षा अधिकारी, सहायक विकासखंड शिक्षा अधिकारी, खण्ड स्त्रोत समन्वयक, जिले से भी विभिन्न प्रकार के अधिकारियों की शिक्षा गुणवत्ता एवं निरीक्षण हेतु उत्तरदायित्व आबंटित है पर वर्तमान स्थिति को देखकर यह निःसंदेह कहा जा सकता है कि अधिकांश पदाधारियों ने जिले के 2 प्रतिशत से ज्यादा स्कूलों को झांक कर तक नहीं देखा होगा, कर्तव्य के प्रति समर्पित या धरातल पर अच्छा कार्य करने वाले शिक्षकों का मनोबल भी विभागीय उदासीनता से टूटता नजर आ रहा। प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे ग्रामों में स्थिति क्या होगी यह कयास लगाना अत्यंत आसान है क्योंकि जिला मुख्यालय या ब्लॉक मुख्यालय के समीपस्थ शालाओं में ही दिया तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ होते आप आसानी से देख सकते हैं। अभी जिले के अधिकांश शालाओं में शाला भवन, शौचालय इत्यादि के मरम्मत हेतु राशि विभिन्न कार्य एजेंसियों को प्राप्त हुई है पर इसमें भी सिर्फ औपचारिक स्तर का ही कार्य होगा , समस्त पंचायतों में एक मद सालाना आता है शिक्षा एवं स्वच्छता हेतु किंतु पंचायतों द्वारा भी राष्ट्रीय पर्वों पर लड्डू बांटकर ही निधि की विधि बना ली जाती है। अगर निधियों का उपयोग अच्छे से किया जाये तो प्रत्येक शाला की स्थिति उन्नत हो सकती है । इन्ही सब के बीच एक यक्षप्रश्न क्या देश के भविष्य को ऐसे ही गढ़ा जायेगा?